Sunday 14 February 2016

कैसे होगी लैब की प्रायोगिक परीक्षाएं, जब क्लास रूम में ही सिमट गया प्रयोगशाला

फोटो पेज 1 पर स्कूल प्रभारी कह रहे : छात्रों का पढ़ाया जाएं या लैब की देखभाल की जाएं 0- हायर व हायर सेकंडरी स्कूल की संख्या 6026 0- बजट के बावजूद प्रायोगिक शाला की दुर्दशा 0- प्रयोगशाला में रसायन व उपकरणों की कमी 0- 15 से 30 जनवरी तक प्रायोगिक परीक्षाएं आयोजित पंकज दुबे दबंग दुनिया। रायपुर। माशिमं बोर्ड एक तरफ जहां प्रेक्टिकल की परीक्षाओं में बाहर से आ रहे निरीक्षकों का खर्च बचाने के लिए दसवीं-बारहवीं बोर्ड के प्रेक्टिकल परीक्षा कराने की जिम्मेदारी स्कूल प्राचार्यो को सौपने जा रही है, वहीं राजधानी में संचालित सभी हायर सेकंडरी शासकीय व निगम स्कूलों के प्रयोगशालाओं की स्थिति को काफी खस्ताहाल में है। जहां पर एक साथ क्लास के छात्रों का प्रेक्टिकल कराना मुश्किल है, क्योंकि लैंब में पर्याप्त रसायन व उपकरणों की कमी देखी जा रही है। दबंग दुनिया की टीम ने शहर में चल रहे कुछ प्रमुख शासकीय व निगम हायर सेकंडरी स्कूलों के प्रयोगशालाओं की पड़ताल की। जहां पाया कि अधिकांश स्कूलों के लैंब रूम साल में एक बार सिर्फ बोर्ड प्रेक्टिकल के लिए खोला जाता है उसके बाद हमेशा बंद रहते है। जिससे लैब में पड़े कई रसायन प्रदार्थ व उपकरण का देखभाल नहीं होंने से वह खराब हो गए है। जबकि प्रयोगशाला के नाम पर शिक्षा विभाग हर साल स्कूलों में बजट आवंटित करता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो आगामी सैद्धांतिक व प्रायोगिक परीक्षा के लिहाज से छात्र-छात्राओं को पुन: मुश्किलों का सामना करते हुए परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए पशोपेश की स्थिति बन रही है। प्रयोगशाला बना स्टोर रूम कोटा स्थित निगम के हायर सेकंडरी स्कूल में पड़ताल के दौरान देखा गया कि विद्यालयों में विज्ञान गतिविधि ठप है। क्योंकि प्रयोगशाला को क्लास रूम बना दिया गया है। जहां महज एक टेबल रख कर उसी पर लैंब के उपकरण रख दिए है। जो काफी समय से धूल-मिट्टी खा रहे है। साथ ही पाठ्यपुस्कों का अंभार लगा दिया गया है। ऐसे में जब स्कूल प्रभारी हेमंत वर्मा से पूछा गया तो उन्होंने साफ तौर से विभाग की जिम्मेदारी ठहराते हुए कहा कि अब क्या करे, स्कूल में पर्याप्त शिक्षक व लैब अस्सिटेट ही नहीं है। तो छात्रों का पढ़ाया जाएं या लैंब की देखभाल की जाएं। समय आने पर सभी कार्य पूरे हो जाएगे। धूल-मिट्टी देख शिकायत करोंगे नगर निगम से महज दूरी पर स्थित माधवराव सप्रे हायर सेकंडरी निगम के स्कूल में जब लैंब रूम को दिखाने की बात स्कूल प्राचार्य उमेश चंद शुक्ला से की गई। उनका साफ तौर पर यही कहना था कि लैंब रूम काफी समय से बंद है। जहां पर अभी काफी धूल-मिट्टी होगी और उसे देखकर आप शिकायत करोंगे। इसलिए किसी दूसरे दिन आइए लैंब की सफाई हो जाएगी तो देख लेना। उद्देश्यों का हो रहा दरकिनार स्कूल में बने प्रयोगशालाओं के उद्देश्य को देखा जाएं तो शिक्षकों और छात्र-छात्राओं में विज्ञान के प्रति रूचि बढ़ाना, प्रायोगिक कार्यों की संख्या बढ़ाना, उपकरणों के रखरखाव आदि है। जिले के कई बड़े स्कूलों में प्रयोगशाला को स्टोर बना दिए गए हैं एवं प्रयोगशाला सफाई भी नहीं है। प्राचार्य एवं विषय शिक्षक इस बात को गंभीरता से लेकर प्रयोगशाला व्यवस्थित रखें। प्राचार्य एवं विज्ञान प्रभारी रूचि लेकर छात्र -छात्राओं को प्रायोगिक कार्यों के लिए प्रेरित करें। लेकिन अधिकांश स्कूलों में इस उद्देश्यों की लगातार अवेलना की जा रही है। जिस पर स्कूल शिक्षा विभाग भी मौन बैठा है। बजट के बावजूद लैब की सफाई नहीं प्रयोगशाला के नाम पर हर साल स्कूलों में लैब मेंटेन के लिए प्रतिवर्ष 25-25 हजार रुपए प्रत्येक हाईस्कूल, हायर सेकेण्डरी विद्यालय को राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की ओर से दिया जाता है। इसी तरह निगम में भी लगभग रहता है। जिससे इस बजट से ही स्कूल के शिक्षक प्रयोगशाला के उपकरण, कैमिकल व अन्य सामग्री का क्रय करते हैं। इसके बावजूद राजधानी के चर्चित शासकीय स्कूल प्रो जेएन पाण्डेय हायर सेकंडरी में देखा गया कि बारहवीं के छात्रों से ही लैब रूम की सफाई करवाई जाती है। साथ लैब में पडेÞ कई रासायन अनुउपयोगी हो गए है। ऐसे में शिक्षक सामग्री का क्रय करने में उदासीनता दिखाते हैं। शिक्षक की कमी से जुझ रहा लैब प्रयोगशाला के मामले में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। अधिकांश स्कूलों में लैब के लिए रूम ही नहीं है। कहीं लैब है भी तो वहां शिक्षक पदस्थ नहीं है। नतीजा स्कूलों में बायोलॉजी, रसायन एवं भौतिक शास्त्र के प्रैक्टिकल ही नहीं कराए जाते। जबकि इन विषयों में पारंगत होने के लिए प्रैक्टिकल करना बेहद जरूरी होता है। लेकिन प्रेक्टिकल के अभाव में बच्चों को विषयों का सही ज्ञान नहीं मिल पाता। लैंब में जरूरी उपकरण रसायन संबंधी प्रेक्टिकल के लिए लगने वाले सामानों में कोनिकल फ्लास्क , परखनली, रासायनिक चूर्ण, बर्नर। इसी तरह से भौतिक विषय में लगने के लिए स्क्रूगेज, वर्नियर कैलीपर्स, माइक्रोस्कोप, बैटरी। वहीं जिन विद्यालयों में सामाग्री उपलब्ध है, वहां तंग कमरों में प्रयोगशाला संचालित होने के कारण सामानों में जंक लगने लगे हैं। प्रायोगिक परीक्षा स्थानीय स्तर पर इससे इस बार बगैर निरीक्षक के लिए स्कूल के प्राचार्य प्रायोगिक परीक्षाएं करा सकेंगे। 15 से 30 जनवरी तक प्रायोगिक परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी। अब नवमी, दसवीं की तरह की 11वीं और 12 वीं की सैद्धांतिक और प्रायोगिक परीक्षा स्थानीय स्तर पर करने की तैयारी की जा रही है। वहीं सचिव सुधीर कुमार अग्रवाल का कहना है कि फिलहाल प्रायोगिक परीक्षाएं ही स्कूल के प्राचार्य कर सकेंगे। वर्जन लैंब का निरीक्षण जल्द शुरू होगा विद्यालयों के प्रायोगिक कार्य संचालित करने के लिए प्रति वर्ष 25 हजार रुपए का आबंटन किया जाता है। हाई स्कूल स्तर के प्रायोगिक कार्य ऐसे है जिसे कक्षा में ही किया जा सकता है। प्राचार्यों की जिम्मेदारी है कि विद्यालयों में बने सभी प्रायोगिक कार्यों का अवलोकन करें। साथ ही आगमी परीक्षा के तहत प्रायोगिक एवं सैद्यांतिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्कूलों का सतत निरीक्षण शुरू किया जाएगा। आशुतोष चावरे जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर

सायबर कैफे में नियमों की उड़ रही धज्जियां

विभाग के पास संचालित सायबर कैफे का आंकड़ा ही नहीं सायबर कैफे में नियमों की उड़ रही धज्जियां दबंग दुनिया। रायपुर। राज्य शासन सायबर जैसे अपराधों पर रोकथाम के लिए सायबर कैफे नियम 2009 तो बना दिया है, लेकिन उन नियमों का शहर में संचालित सायबर कैफे कितना पालन कर रहे है। इसकी जानकारी लेने वाला कोई अधिकारी नहीं है। जिसके आड़ में शहर के अधिकांश सायबर कैफों में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। जहां पाया कि अधिकांश सायबर कैफे में बिना किसी आईडी कार्ड व रिकॉड मांगे ही लोगों को इंटरनेट चलाने दिया जा रहा है। वहीं लोग भी नियमों का दरकिनार करते हुए घंटो इंटरनेट का उपयोग कर रहे है। जिसे रिकॉड के रूप में सिर्फ एक रजिस्ट्रर बना दिया गया है। जो हर दूसरे महिने में रद्दी हो जाती है। इसी कड़ी में दबंग दुनिया की टीम ने राजधानी के कुछ सायबर कैफे सेटरों की पड़ताल की। आईडी नहीं मांगते () बुढ़ापारा तालाब स्थित श्याम टाईपराइटिंग इंस्ट्टियूट चला रहे दुकान संचालक से जब यह पूछा गया कि इंटरनेट का उपयोग कर रहे ग्राहकों से आईडी नहीं मांगते। जिस पर दुकानदार का कहना था कि कैफे नहीं चलाते है। जबकि दुकान में दो-तीन कंम्पयुटर इंटरनेट के उपयोग के लिए रखा गया है। साथ ही शॉप में आॅनलाइन फॉम, मनी ट्रांसपर जैसे कार्य भी होते है। रजिस्टर में लिखवाते है () तात्यापारा में रेलवे, ट्रैवल के साथ सायबर कैफे भी चल रहे शॉप में इंटरनेट का उपयोग करने के लिए किसी खास पहचान पत्र की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि दुकान संचालक कहना है कि बहुत अधिक कस्टमर नहीं आते है। फिर भी जो ग्राहक इंटरनेट का उपयोग करने के लिए आते है उनका नाम, पता आदि रजिस्ट्रर में लिखवाते है। कैफे में चार कंम्पयुटर संचालित हो रहे साथ में बेव कैंप भी लगा है। सिस्टम में दर्ज होता है () कबीर नगर में सायबर कैफे के लिए रजिस्ट्रर में भी नाम दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि कस्टमर की पूरी जानकारी इंटरनेट का उपयोग करने से पहले ही कंम्पयुटर में दर्ज हो जाती है। वहीं दुकान में पांच सिस्टम लगाए है। लेकिन सीसीटीवी, सायबर कैफे की जरूरी सूचना जैसे कोई भी नियम कैफे में नहीं दिखे। कैफे का रिकॉड नहीं राजधानी में इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की संख्या जिस प्रकार तेजी से बढ़ रही है। ठीक उसी तरह आये दिन लोग किसी न किसी वजह से साइबर क्राइम का शिकार बन रहे हैं। लेकिन इससे बडीÞ चिंता और क्या हो सकती है कि सायबर सेल विभाग के पास राजधानी में कितने सायबर कैफे संचालित हो रहे। इसका कोई रिकॉड़ नहीं है। ऐसे में सिर्फ रजिस्टर्ड साइबर कैफों की संख्या शून्य होना प्रशासन की कार्यक्षमता, संचालकों की जागरुकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। साइबर से घटी कई घटनाएं राजधानी में पिछले कुछ वर्षो से आॅनलाइन लाटरी के तमाम फर्जी ई-मेल भेजकर लोगों को ठगने के साथ महिलाओं और युवतियों को ब्लैकमेल की घटनाएं हुई। साथ ही कुछ ठग एटीएम कार्ड का नं.और पासवर्ड पूछकर ठगी कर रहे हैं। ऐसें में सायबर सेल के पास संचालित कैफे का कोई रिकॉड़ नहीं होना व रजिस्ट्रेशन न होना चिंता का विषय है। बगैर रजिस्टेशन चल रहे साइबर छग सहित राजधानी में लंबे समय से बगैर रजिस्ट्रेशन के साइबर कैफे चल रहे हैं। इसी तरह से बिना रजिस्ट्रेशन के ग्रामीण अंचलों में भी कई सायबर कैफे संचालित हो रहे है। इसमें सबसे ज्यादा अभनपूर, तिल्दा, उरला, हिरापूर, कबीरनगर, चंदखुरी, विरगांव आदि शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में बगैर रजिस्टेशन के कई सायबर कैफे संचालित हो रहे है, लेकिन पुलिस और प्रशासन के पास इनकी कोई जानकारी ही नहीं है। वर्जन राजधानी में जितने भी सायबर कैफे संचालित किए जा रहे है उन्हे इंटरनेट युज करने वाले हर ग्राहक के पुख्ता रिकार्ड रखना आवश्यक है। यदि कही पर इसका पालन नहीं किया जा रहा है तो जांच करवाई जाएगी। निरज चंद्राकर शहर एएसपी छग सायबर कैफे के नियम सायबर कैफे में व्यक्ति की पहचान जरूरी पहचान बताए बिना कम्प्यूटर के उपयोग की अनुमति नहीं। स्कूल, कॉलेज का फोटोयुक्त पहचान पत्र, बैंक का केडिट कार्ड, मतदाता परिचय पत्र, पैन कार्ड ड्रायविंग लायसेंस। दस्तावेज नहीं देने पर कैफे संचालक संबंधित व्यक्ति की वेब कैमरा से फोटो खीच सकेगा,लेकिन महिला उपयोगकर्ता की इतना फोटो लेना पर्याप्त होगा, जिसमें उसकी आंख और नाक दिखाई दे। लॉग रजिस्टर संधारित करने के बाद उसे आॅनलाईन प्रारूप से लिंक करना होगा। लॉग रजिस्टर को कम से कम एक वर्ष तक लिखित में और लॉग रजिस्टर के आॅनलाईन वर्सन में सुरक्षित रखना होगा । महिने के 05 तारीख तक लॉग रजिस्टर की मासिक रिपोर्ट, हार्ड और साफ्ट कॉपी के साथ थाने में देना होगा। सायबर कैफे के भीतर यदि कोई पार्टीशन या क्यूबिकल बनाया गया है तो उसकी ऊंचाई फर्श के तल से साढ़े चार फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए। विभाजन या क्यूबिकल को छोड़कर, सायबर कैफे में स्थापित प्रत्येक कम्प्यूटर का मुंह बाहर की ओर रखना होगा। विभाजन या क्यूबिकल वाले कैफ में अवयस्क के साथ में अभिभावक जरूर रहे। कैफे का निरीक्षण कोई भी सायबर पुलिस प्राधिकारी, किसी भी समय कर सकेगा। कम्प्यूटर सिस्टम के समय को भारतीय मानक समय से मिलाकर रखना होगा। सायबर कैफे खोलने अथवा बंद करने की सूचना संबंधित थाने को देनी होगी। कैफे संचालक कैफे में अश्लील साइट्स देखना निषिध्द है, का बोर्ड भी प्रदर्शित करेगा।

Tuesday 9 August 2011

   मित्रो नमस्कार,मै उत्तर प्रदेश का मूल निवासी हूँ उससे  पहले मै एक भारतीय हूँ,मैं मुंबई मे रहता हूँ और मैंने केसी कॉलेज से हिंदी पत्रकारिता  मे एक साल का डिप्लोमा का कोर्स किया है,मै अपने जीवन के सुरवाती दौर से ही परतियोगिता जैसे कार्यो मे भाग लेता था, मेरी रूचि हमेसा सामाजिक कार्यो मे थी. जिसके वजह से हमारे पिता स्व .श्री जग्गनाथ दुबे जी की परम इच्छा थी की मै वकील बनू या अद्यापक, जैसा  की वकील बनना तो ठीक था मगर अध्यापक बनना मुझे एकदम नापसंद था कियोकी मै हमेसा पदाई में  दुसरे कर्मांक का क्षात्र रहा था .....कुछ  समय बाद पिता जी काफी वीमार हो गये जिसमे मै काफी उलक्ष गया लगातार दो साल वीमारी के चक्कर मे हम एक दम टूट गए और अंत समय मे पिता श्री परलोक को  गमन हो चले ....मै एकदम सा टूट गया क्योकि पिता जी का काफी मुझे सहयोग मिलता था ..कुछ समय बाद मै छोटी -मोटी नौकरी किया ...मुंबई से पूना चला गया काम के सिलसिले मे वहा पर मै एक कंपनी मे सुपर विजन का काम मे लग गया .....हमारा काम रात मे होता था ..मुझे एक दिन सपने  में  पिता जी आये और बोले तुमने मेरे इच्छा पूरी नही किया ..बस मै सुबह   सोच मे पड़ गया की क्या करू जिससे अपना खर्चा भी चलना चहिये और समाज से जुड़ा कार्य हो ..नेता तो बन सकता नही था वकील के लिए पैसा व तीन साल का समय ,,,मै बहुत सोच   मे पड़ गया दिन भर इसी उधेड़ बुन मे बिता ,,,,मै नवभारत times  हिंदी पेपर का जबर्दस्त पाठक हूँ बस उसी दिन उसमे के सी मे पत्रकरिता कोर्स  का प्रकाशन हुआ था ...बस मैंने आव ना देखा ताव तुरंत कॉल किया और पूरी जानकारी लिया फीश २५००० हजार, किस्त मे भी चलेगा,आदि मिला , मै पूना से  मुंबई आया और दाखिला के लिए फोर्मं भर दिया मुझे बताया गया की इन्तेर्विएव  होगा तब जाकर दाखिला होगा ..मै पूना वापस aagya  और अपनी  तैयारी मे लग गया जैसा की पूना मे नवभारत times  पेपर  बहुत काम मिलता है  पेपर लेने के लिए मै १० रूपये जयादा देकर रखता था ...की कब बुलावा आ जाय एक दिन छोडकर रोज केसी कॉलेज  मे फ़ोन करता ....बस आ गया बुलावा समय के अनुसार मै एक घंटे पहले ही पहुच गया ..मेरा नाम बुलाया गया ,  मै रोज पेपर पड़ता था ..जैसा की इन्तेवीव में  सफल हुआ श्री भूपेंद्र त्यागी जी ने इंटरविव  लिया था जो नवभारत times मे sr संपादक है ......आज भी मै उन्हें अपना गुरु मानता हूँ मैंने 1st क्रमांक से पत्रकारिता कोर्ष का कार्य  सफल किया ...उसके बाद वह वक्त मंदी के दौर था इसलिए जहा मिले ज्वाइन कर लो यह बताया  गया ,मै महुआ न्यूज़ मे ज्वाइन किया कुछ समय तो इन्तेर्शिप किया फ्हिर जॉब की बात पर कुछ सकारात्मक जवाब नही मिला..धीरे धीरे मुझे तंगी का  सामना करना पड़ रहा था ..तब मुझे बस पैसे के लिए कही दुसरे जगह ज्वाइन करना पड़ा  उस समय a2z न्यूज़ चैनेल नया आया था सभी लोग ने राय दिया की ज्वाइन कर लो मै वहा पर गया mr ...से बात हुयी बोले ३००० हजार मिलेगा तीन महीने बाद बडाये गे (मरता क्या ना करता  )मै ज्वाइन किया सोचा अच्छा समय आ जायगा, यहा पर मुझे बस स्क्रिप्ट लिखो ,चैनल्स सर्च करो यही काम देते मैंने सर को एक दिन कहा मुझे कम  से कम एक स्टोरी पर जाने दिया जाय .जवाब मिला की   अभी अपनी स्क्रिप्ट सुधारो,, लिंक बनाओ .वही पर .कुछ दिन बाद एक महिला जी ने ज्वाइन किया,और अभी वह पत्रकारिता की  पढाई कर रही थी बस उनको दो- तीन दिन बाद रिपोटर का कार्ड मिला ,५००० हजार पगार था उसी दिन से मुझे दुःख हुआ लेकिन मै किसी से बोल नही पाया , कुछ दिन बाद कुछ लोग वहा से हट गये तो मुझे मौका मिला काम करने का लेकिन पगार .मे कोई इजाफा नही था .टाइम सुबह ९.३०.to १०.३० ,मै कई बार बोल चूका लकिन बदलाव नही ह्युआ ...उसके बाद वहा का माहोल एक दम अलग सा हो गया कहा जाता वसूली वाली स्टोरी करो मै इसका विरोध किया ..जिसके बाद मुझे मजबूरन वहा से काम छोड़ना पड़ा ..मै काफी चिंतिः हुआ किसे फ़ोन करू कुछ विस्स्नीय लोगो को फोन किया बस यही जवाब मीडिया की हालत एक दम ख़राब है बताता हूँ ..मै एक दम ड़र गया   अब क्या करू सब कुछ छोड़ कर इस लाइन मे आया था ,,एक दिन ऐसे ही काम के लिए बाहर गया तो एक दोस्त ने मुझे बताया की मैगजीन मे काम करना है तो कल फला जगह जाकर इन्तेर्विव दे दो मै वहा पर गया और ज्वाइन  किया जहा आज मै  रिपोटर के पद पर हूँ यह मैगज़ीन मारवाणी समाज की है अथार्थ होम मैगज़ीन है जिसमे सिर्फ उनके समाज के बारे मे लिखा जाता है .(.बाय लाइन नही देगे ,,विज्ञापन की बात करना पड़ेगा , ३० दिनों तक काम करना होगा) अअदि  यहा के नियम है मै ने सोचा मना कर दू लेकिन  (मरता क्या न करता)  मै बोला की बाय लाइन नही मिलेगा ठीक है पर विज्ञापन की बात मै नही करुगा १३००० हजार पगार बोला गया बस उसी तरह से एस पत्रकारिता के क्षेत्र को..सञ्चालन करते हुए निरंतर लगा  हूँ.. और  यही कुछ अपनी कहानी है जिसे मै आप से खुलासा किया है  मै तो समाज सेवा की सोचा था पर यहा तो चाटुकारिता की पूरी जमात बैठी है अर्थात मरता क्या न करता  बस अब यही पर अपनी लेखनी को विराम देना चाहता हूँ एस लेखनी में कही कुछ अनजान बस पत्रकारिता जगत की कुछ मान हानि हो गयी हो तो मुझे अबोध समझकर माफ़ कर्दिजियेगा   क्युकी मानुष प्रवित्ति में दोस का होना एक सहज है ,,लेकिन सुधार व मार्गदर्सन की अभिलासा उसे जरुर रखना चाहिए ,उसी प्रकार यह आपका मित्र अर्थात  पंकज दुबे भी जीवन के संघर्ष के रह पर चल पड़ा है आशा ही नही पूरा भरोसा है की एक दिन मुझे अपनी मंजिल जरुर मिलेगी .,....धन्यवाद पंकज दुबे 09769365220

Monday 8 August 2011

          ना जाने किस भेष मे नारायण मिल जाए ,,,,
 ,जैसा की हर इन्सान की एक अपनी पहचान होती है कुछ लोगो को उनकी मेहनत -लगन से वह मुकाम कुछ ही दिनों मे मिल  जाती   है तो वह भगवान् को सुक्रिया कम  मानकर अपने को जयादा मानते है इस बात को नाकारा भी नही जा सकता है कियोकी  अपने लक्ष्य को असली रूप मेउन्होंने सही रूप मे बहुत ही जल्दी से जान लिया बस परिस्थिया बनती गयी और मुकाम अपने आप उस व्यक्ति के दरवाजे पर दस्तक देने लगी तो इस बात से यह आशय हो जाता है की उस व्यक्ति का खुद्द  को अपनी सफलता मानना कही ना कही जायज है,व्ही दूसरी तरफ अगर नजर दौड़ाया जाय तो कुछ जगह अपने को पहचान बनाने मे   भगवान का  जयादा   आभार माना जाता है  जैसा की एक उदा ,बताना चाहुगा,एक मेरे मित्र बारहवी का एग्जाम देने जा रहे थे .अब इन  दिनों में  दिल और दिमाक दोनों जगह बड़ा हलचल रहता है  की क्या पदे-फला नोट्स देख ले  ,मैथ्स का सूत्र याद करले, इंग्लिश में ग्रामर को ठीक कर ले आदि  फ्हिर सोना है और सुबह जल्दी उठाना है तमाम तरह के बातो के उल्क्षण में कुछ बाते छुट जाती है  जो कही न कही पुरे मेहनत पर पानी फेर देता है अमित का आज पहला पेपर है और सुबह से ही अमित एक दम  जोर -खरोश के साथ परीक्षा देने समयानुसार घर  से निकाल पड़ा जैसा की परीक्षा के समय से एक घंटे पहले अमित चल दिया . सेंटरहॉल  में पहुच गया दोस्तों से विषय सम्बन्धी बाते होने लगी  कुछ समय बाद परीक्षा का टाइम हो गया सब क्षात्र  अपने -अपने कक्षा में पहुच गये पेपर बटने लगा .अब क्लास अध्यापक परीक्षा सम्बन्धी सभी काम करने लगे , अमित भी पेपर लिखने लगा  तभी जब अध्यापक अमित का हॉल टिकेट मागा तो अमित अपने जेब और पर्स में देखने  लगा अब  हॉल टिकेट तो अमित से कही गिर चूका था जिसका उसे अंदाजा नही हुआ .अध्यापक ने अमित से सवाल -जवाब करने लगे  अमित एक दम घबरा गया माथे पर घबराहट और पसीना आ गया ,अध्यापक ने अमित को कहा बिना हॉल टिकेट तुम एक्साम में नही बैठ सकते हो   अब उस समय मोबाईल का जमाना थोडा कम था नही तो घर से किसी से संपर्क आदि किया जा सकता पर भागते समय को कौन रोक सकता है आज यह समय अमित के जीवन का फैसला करेगी  और अमित एक दम लचार दशा में परिस्थिथि से समझौता करने की जद्दोजहद कर रहा था  इस १५ से २५ मिनट ने अमित को काफी नर्बस किया ,पर यह बात सत्य है की भगवान् हर मनुष्य पर दया करता है और किया उस कॉलेज में एक अजय तिवारी सर थे जो परीक्षा निरक्षक थे , उनका वहा से चहल कदमी हुयी तो अध्यापक ने अमित की पूरी समस्या से अवगत कराया ,धन्य हो अजय तिवारी जी का उन्होंने अमित को हिम्मत दिया और कहा बेटा पहले तुम पेपर लिखो .वाकई तिवारी जी के यह कहे वाक्य ने मनो अमित की जिन्दगी को गतिशील कर दिया ,और  नाम,कॉलेज  पूछ कर चल दिया  उन्होंने अमित की पूरी जानकारी उस कॉलेज से फैक्स के माद्यम से मागा लिया, बस कही कुछ अधिक हिम्मत और सहयोग ने अमित के माथे पर पसीने की बूद कम  कर दिया   ...अमित आज डोक्टर  है और उसने हमेसा अजय तिवारी  जी का आभार माना और इस आभार का बदला उसने तिवारी जी के हार्ट का आपरेशन किया बिना पैसे का ,,,यानी यहा कहने का तात्पर्य यह है की हर आदमी हमेसा अपडेट रहना चाहता है पर कुछ परिस्थितिया अनरूप नही बनायीं जा सकती है बल्कि हमें उसके अनरूप बनना पड़ता है और जिसके आड़ में मनुष्य आपने चाहत की दुनिया से काफी दूर चला जाता है और अंत में हालात के आगे विबस हो कर बैठ जाता है ....यानी अमित का भला तिवारी जी के माद्यम से भगवान् ने किया अर्थात मनुष्य को हर किसी का समर्थन करना चाहिए जितना हो सके  कब कौन कहा काम आ जाय ,,,,,,
पंकज दुबे 
पत्रकार 
मुंबई

Sunday 7 August 2011

Monday 1 August 2011

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल
भारत देश को किसी समय सोने की चिड़िया से पुकारा जाता था,जहा पर घर के दरवाजो पर ताले नही लगाये जाते थे ,और ना ही कभी जाति,धर्म के नाम पर कोई राजनिति की विसात बैठाई ज़ाती थी लेकिन समय के बदलते  दौर ने एकदम उल्टा कर दिया है और अब चारो तरफ फैली रही भ्रस्टाचार व ,जाति-धर्म के नाम पर राजनिति की  चौसर बिछाई जा रही है ,जैसा की एक  कहावत है की पाप का घड़ा एक दिन फूट जाता है,और उसी प्रकार चारो तरफ फ़ैल रही भास्ताचार का भी अंत का समय आ गया है ,जिसका अलख जन लोकपाल के रूप तैयार किया गया है .जिसका  कुछ दिनों से  लेकर समाचार पत्रों मे काफी चर्चा थी ,दिल्ही के जन्तर -मंतर आदि जगहों पर धरना प्रदर्शन अन्नाहजारे के अगुवाई मे संपन हुआ ,जिस्समे नेता से लेकर केंद्र मे बैठी सरकार के हाथ -पाँव  फूलने लगे ...
भारत मे अक्सर कहा जाता है की भीड़ को देख कर लोग जमा तो हो जाते है पर भीड़ का असली वजह से बेखबर रहते है ,जैसे अक्सर चुनाव मे भीड़ जमा करने के लिए चन्द्र पैसे पर भोली -भाली जनता को भीड़ के आड़ मे गुमराह किया जाता है और जनता  महज कुछ नास्तो व पैसे से कुछ छुटभैये  नेताओ के बुलाने पर आ जाती है
उसी प्रकार भारत की  तमाम जनता को लोकपाल के बारे मे पूरी जानकारी नितान्त होनी चाहिए जिससे उनको कमसे काम राजनिति भीड़ के रूप मे ना देखा जा सके और खुद्द को भी मालूम हो सके की हम यहा किस लिए जमा हुए है .  जिससे यह बिलकुल प्रतीत ना हो की हम एक भेड़ की भीड़ मे खड़े हुए है ,,सबसे पहले सीधा व सरल सब्दो मे इसकी शुरवात करते है की हमें अक्सर अपने जीवन के कुछ मत्तवपूर्ण कार्यो के लिए सरकारी दफ्तरों मे जाना पड़ता है और वहा पर सरकारी बाबू से जब हम वोटर कार्ड ,पैन कार्ड ,पासपोर्ट ,राशन कार्ड आदि मत्त्व्पूर्ण कागजो को बनवाने व कुछ  सुधार करने की बात करते है तो वहा पर बैठे सरकारी बाबू
इसके बदले मे बड़ी -बड़ी नियमो की चर्चा करते है ताकि हम आप लोग ड़र जाय की अब तो जो कुछ होगा वह बाबू साहब के हाथो से ही होगा और कुछ दिनों तक  चक्कर लगवाकर एक दिन कह देगे की आप का काम तो बहुत मुस्किल है पर आप पर मुझे बड़ी दया आ  रही है,और आप काफी परेशान भी हो रहे है आप का काम तो हो जाएगा पर कुछ खर्चा करना पड़ेगा वह जो बड़े साहब है उन्हें कुछ चाय पानी पिलानी पड़ेगी अब बेचारा आम आदमी अपने कामकाज को छोडकर इन सरकारी दफ्तरों की चक्कर तो नही लगाते बैठेगा औत अंत मे वह सरकारी बाबू की माग को मान लेता है और बिना पैसे के काम को पैसा देकर काम करवाता है  अब  इसी तरह के सभी भार्स्ताचार को चाहे वह छोटा हो या बड़ा , अफसर हो या नेता, मंत्री हो या प्रधानमंत्री ,वकील हो या जज सभी लोगो के उपर नकेल कसने का समझैता का नाम है लोकपाल विधेयक जो जस्टिस संतोष हेगड़े ,प्रसान्त भूसन ,अरविन्द केजरीवाल ,किरण बेदी ,आदि लोगो के विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया है जिसे सामाजिक कार्यकर्त्ता किसन बाबूराव हजारे उर्फ़ हन्ना हजारे के नेत्रुत मे केंद्र सरकार व आम जनता केव सामने पेश किया गया है ,,.....
अब लोकपाल की जन्मता की बात किया जाय तो सबसे पहले स्कैडीनोवियाई  देशो मे इसकी शुरवात किया गया था ओम्बुड्समैन की तर्ज पर भारतीय लोकपाल की रचना की गयी .स्वीडन मे ओम्बुड्समैनकी स्थापना सन १८०९ मे ही पहले की जा चुकी थी बस इसके तुरंत बाद अन्य देशो मे अधिकारी वर्ग के कार्यो से आम जनता को  काफी मस्कत ना करना पड़े और भार्स्ताचार की नीव का बीजारोपण ना हो सके तभी जाकर इस तरह की संस्था का सूत्रपात किया गया ... ओम्बुड्समैन एक स्वीडन शब्द है जिसका मतलब होता है की विधयेक दवारा एक ऐसा अधिकारी नेव्युक्त किया जा सके जो प्रशासनिक और न्यायिक समन्धि शिकायतों का निष्पक्ष निपटारा कर सके ...
कुछ समय बाद तक़रीबन सन १९६० के दशक की शुरवात मे देश के प्रशासनिक ढाचे मे भार्स्ताचार की शुरवाती झलक देखि जाने लगी बस जिसके बाद स्कैडीनोवियाई  देशो की तरह भारत मे भी ओम्बुड्समैन की नितांत आवश्यकता मह्सुश की जाने लगी और ५ जनवरी १९६६ को मोरारजी देसाई की अध्यक्षा मे प्रशासनिक आयोग की नीव राखी गयी....और सरकार  के माद्यम से पहला लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक सन १९६८ मे चौथी लोकसभा मे  पेश किया गया था .और यह सदन से  सन १९६९ मे पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा मे आकर विधेयक बनने से पहले रुक गया और इसी बीच लोकसभा भंग हो गयी जिसके बाद यह विधयेक भी पहली बार मे ही समाप्त हो गया फ्हिर नए सिरे से इसकी पेशकस किया गया और दुबारा सन १९७१ मे भेजा गया.जिसके बाद ना जाने कितनी सरकार आती गयी ओर जाती गयी पर लोकपाल मे कुछ ना कुछ विसंगतिया निकलते हुए४२ साल से  इसे ठन्डे बसते मे डाल दिया गया है
अब अन्ना हजारे की टीम ने जन लोकपाल की नीव की शुरवात किया है जिसके अंदर उन तमाम बातो का वर्णन गया  किया है जो देश को खोखला बनाने मे एक अहम् भूमिका निभाते आया रहे है तो आईये एक नजर  डालते है की क्या है अन्ना हजारे के जन लोकपाल मे खाश जो सरकारी लोकपाल  को नही आ  रहा है राश ......
सबसे पहले जनलोकपाल विधेयक पारित हो जाने के बाद इस अधिनियम को  जन लोकपाल अधिनियम २०१० कहा जा सकता है और यह अधिनियम अपने १२० वे दिन मे प्रभावी हो जायगा और इस कानून के तहत केंद्र मे लोकपाल और राज्य मे लोकायुक्त टीम का निर्माण किया जायगा,जन लोकपाल विधेयक चुनाव आयोग और उच्चतम न्यायलय की तरह से ही स्वतंत्र होगा ,जन लोकपाल विधेयक के अंतर्गत चल रहे मुक़दमे एक साल के अंदर ही पूरी  की जायगी और ट्रायल अगले साल एक साल मे पूरा होगा, इस अधिनियम के तहत भ्रस्ट नेता .अधिकारी या जज को दो साल के भीतर न्याय कर जेल भेज दिया जायगा
भ्रस्टाचार की वजह से लगे सरकार के नुकसान को अपराधी के अपराध शिद्द हो जाने पर खामियाजा के रूप मे वसूला जाएगा ,तथा कोई सरकारी अधिकारी किसी नागरिक का काम तय सीमा मे नही करता है तो तो इस अधिनियम के तहत उस पर जुरमाना लगाया जायेगा और वह जुरमाना उस शिकायत कर्ता को मुवावजे के रूप मे प्रदान किया जाएगा ,लोकपाल सदयस्य की टीम का चयन जज ,नागरिक और सवैधानिक संस्थाए के लोग मिलकर करेगे जबकि नेताओ को एन सभी कार्यो से दूर रखा जाएगा ,लोकपाल /लोक्युक्तो का काम पूरी तरह से पारदर्शी होगा और लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के दोषी पाए जाने पर या शिकायत आने पर ऊसकी पूरी ईमानदारी से दो महीने के अंदर जाच किया जाएगा और गलत पाने पर पूरी तरह से बर्खास्त  कर दिया जाएगा ,जन लोकपाल विधेयक मे सीवीसी ,विजिलेश विभाग और सी बी आई आदि भ्रस्टाचार विभागों को मिला दिया जाएगा, लोकपाल को किसी भी भर्स्ट जज ,नेता, अफसर के खिलाफ मुक़दमा चलाने के लिए पूरी तरह से स्वतंत होगा
अब सरकार के लोकपाल के प्रमुख बिन्दो को देखा जाय तो स्पस्ट रूप से समझा जा सकता है की क्या वजह है जो सरकार अन्ना हजारे के जन लोकपाल से  पूरी तरह से नही सहमत हो पा रही है
सरकारी लोकपाल के पास भास्ताचार के मामले पर खुद्द या आम लोगो की शिकायत पर सीधे तौर पर कार्यवाई शुरू करने का अधिकार नही होगा
सांसदों से सम्बंधित मामलो मे आम जनता को अपनी शिकायत राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेगी वही अबकी जन लोकपाल के तहत लोकपाल खुद्द किसी भी मामले की जाच शुरू करने का अधिकार रखता है इसमे किसी से जाच करने के लिए अनुमति लेने की जरुरत नही होगी,, सरकार दवरा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति मे उप्रस्त्रपति,प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता ,दोनों सदनों के बिपक्ष के नेता ,कानून और गृहमंत्री होगे,वही जनलोकपाल  बिल मे न्यायिक क्षेत्र के लोग ,मुख्यचुनाव  आयुक्त ,नियत्रक और महालेखापरीक्षक ,भारतीय मूल के नोबल और मेगासेसे पुरस्कार विजेता चयन करेगे
सरकारी लोकपाल के तहत अगेर कोईशिकायत  झुड़ी पायी ज़ाती है तो शिकायत कर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है जबकि  जन लोकपाल मे झूठ शिकायत करने वाले पर जुरमाना लगाने का प्रावधान रखा गया
गया है ,सरकारी लोकपाल मे लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सासंद ,मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा ,लेकिन जन लोकपाल के दायरे मे प्रधानमंत्री समेत नेता ,अधिकारी ,न्यायधीश सभी सामिल होगे ,
सरकारी लोकपाल मे तीन सदस्य होगे जो सभी सेवानिविर्त्त ,न्यायधीश होगे वही दूसरी तरफ जन लोकपाल मे दश सदस्य होगे तथा इसका एक अध्यक्ष होगा जिसमे से चार का क़ानूनी पृष्ठभूमि होगी बाकि अन्य किसी भी क्षेत्र से चयन किया जाएगा
अभी हॉल ही मे लोकपाल बिल का ड्राफ्ट  कैबिनेट ने मंजूर किया है जिसमे प्रधानमंत्री ,न्यायपालिका और संसद के भीतर सासदो के आचरण को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से  बाहर रखने का फैसला करते हुए इस विधयेक को संसद के एक अगेस्ट महीने मे हो रहे मानशून  सत्र मे शुरवाती एक दो दिनों के भीतर पेश किया जाएगा
और प्रधानमंत्री ,न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे मे नही रहेगे ,प्रधानमंत्री पदमुक्त्य  होने के बाद बाद लोकपाल के दायरे मे आयेगे ,पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री के खिलाफ भार्स्ताचार की कोईभी  शिकायत सात साल तक मान्य नही होगी ,शिकायत मिलने के साथ वर्ष के भीतर अगर वह पदमुक्त होता है तो उसके खिलाफ कार्यवाई की जाच की जा सकती है ,प्रस्तावित लोकपाल मे एक अध्यक्ष व आठ अन्य सदस्य होगे ,इसके आधे सदस्य न्यायपालिका से होगे ,अध्यक्ष पद पर सुप्रीम कोर्ट के किसी सेवारत या सेवानिब्रित न्यायधीश को नियुक्त किया जा सकता है ,और कुछ गैर न्याययुक्त लोगो को सामिल किया जायेव्गा जो पूरी तरह से इमानदार होगे तथा भ्रस्टाचार निरोधी निगरानी के काम मे कम २५ साल का अनुभव होना जरुरी है ,लोकपाल मे किसी भी राजनिति दल को सामिल  किया जाएगा और लोकपाल को पदमुक्त होने के बाद किसी भी दल से चुनाव लड़ने का अधिकार होगा
अब इन दोनों लोकपाल के प्रमुख बिन्दुओ को बारीकी से पड़ा व समझा जाय तो सीधे तौर पर बड़ी आसानी से समझा जा सकता है की अन्ना हजारे की टीम क्या चाहती है और सरकार के प्रस्तावित लोकपाल से क्यों खफा हो गये है और सरकार के लोकपाल को जोकपाल  की उपमा दी है और जन्तर -मन्तर पर एक बार फ्हिर से सरकार के लोकपाल के खिलाफ आन्दोलन पर बैठने जा रहे ...अब सबसे बड़ी बात यह है की अगर सरकार भी भार्स्ताचार को एक दम से ख़तम करने का मन बना लिया है तो इसे ४२ साल तक क्यों नजर अंदाज किया गया है और सरकार की किस ईमानदारी को सबूत के तौर पर देखा जाय वही अन्ना हजारे के  समर्थन मे  शिर्फ़ यूवाओ का ही प्रभाव देखा जा रहा है क्या अन्य सभी पार्टिया मूक बन कर दर्शक का काम कर रही है अगेर यही हाल रहा तो जनता जनार्दन को अब अपने मत का सही रूप से प्रयोग करने का वक्त आ गया है और उन्हें बताना ही पड़ेगा की भारत की आम जनता किसके साथ पूरी तरह से है अन्ना हजारे के(जनलोकपाल ) साथ या सरकार के (सरकारी लोकपाल ) के साथ और तभी जाकर सही रूप से असली तौर पर जाकर भास्ताचार निरोधक लोकपाल का सही रूप दिख पायेगा

लेखक
पंकज दुबे
०९७६९३६५२२९

Friday 29 July 2011